संकट मोचन जगन्नाथ धाम विजयराघवगढ़ मे 7 फरवरी को आयोजित होगा उपनयन संस्कार महोत्सव

(विजयराघवगढ़) संकट मोचन जगन्नाथ धाम विजयराघवगढ़ मे हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी ब्राह्मण पुत्रो का उपनयन संस्कार महोत्सव 7 फरवरी को श्री गरुड़ाध्वज संस्कृत समिति के तत्वावधान मे आयोजित किया जा रहा है।ज्ञात हो कि उपनयन संस्कार वह संस्कार माना जाता है जिसके पश्चात ही बालकों को ब्राह्मण की उपाधि मिलती है। जनेऊ पहनने का अधिकार भी उपनयन संस्कार के पश्चात ही प्राप्त होता है। उपनयन संस्कार, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह संस्कार बालक को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देता है, उपनयन संस्कार को यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है।

ज्ञात हो कि उपनयन संस्कार, हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है। इस संस्कार में बालक को जनेऊ धारण कराई जाती है। जनेऊ में तीन धागे होते हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के प्रतीक हैं। उपनयन संस्कार के बाद बालक को गायत्री मंत्र दिया जाता है। उपनयन संस्कार के बाद बालक को ब्रह्मचारी कहा जाता है। प्राचीन काल में इस संस्कार के बाद बालक को गुरुकुल भेजा जाता था। उपनयन संस्कार से बालक को बल, ऊर्जा, और तेज की प्राप्ति होती है। उपनयन संस्कार से बालक में आध्यात्मिक भाव जागृत होता है। प्राचीन काल में उपनयन संस्कार के लिए शिष्य को गुरु के पास भेजा जाता था, ताकि वह गुरु (गुरुदोष उपाय) से ज्ञान अर्जित कर सके लेकिन आज के समय में किसी भी बालक के उपनयन संस्कार के लिए सही मुहूर्त निर्धारित किया जाता है। हिंदू धर्म में दिशाहीन जीवन को एक दिशा देना ही दीक्षा माना जाता है। दीक्षा का अर्थ संकल्प है। किसी भी व्यक्ति को दीक्षा देने का अर्थ दूसरा जन्म और व्यक्तित्व देना है। इतना ही नहीं जनेऊ व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

अब ऐसे में उपनयन संस्कार में पुत्र अपनी माता से भिक्षा क्यों लेता है। उपनयन संस्कार करने से पहले भगवान गणेश, देवी सरस्वती, माता लक्ष्मी (माता लक्ष्मी मंत्र), धृति और पुष्टि का आह्वान किया जाता है। वर्तमान में यज्ञोपवीत के लिए ब्राह्मण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया जाता है। तभी बालक का मुंडन किया जाता है। उसके बाद घर के सभी बड़े सदस्यों के आशीर्वाद के साथ बालक को 3 सूत्र का जनेऊ धारण करवाया जाता है। उसके बाद बालक के हाथ मे एक डण्डा पकड़ाया जाता है। डण्डा पकड़ाने से यह आशय है कि बालक ज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलकर अपने लक्ष्य को हासिल कर सके। उपनयन संस्कार के बाद वस्त्र, दण्डा और जनेऊ धारण करता है। तभी उस दौरान पण्डित जी बालक को गायत्री मंत्र देते हैं। पश्चात बालक को दीक्षा का महत्व बताया जाता है। उसके बाद बालक ब्रह्मचारी कहलाता है। यह सभी विधि-विधान के बाद बालक अपने परिजनों से भिक्षा लेने के लिए जाता है।

उपनयन संस्कार में भिक्षा लेना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भिक्षा मांगने से अहंकार नष्ट हो जाते हैं। व्यक्ति के अंदर विनम्रता आती है और उसे कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए बल भी मिलता है। वहीं जब बालक अपनी माता से भिक्षा लेने के लिए जाता है, तो उनकी माता उन्हें अन्न देती हैं और प्रेम का परिभाषा भी समझाती है।

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