पत्रकारिता को दबाने की साजिश — चौथे स्तंभ पर हमला क्यों?

(कटनी) आज देशभर में जो तस्वीर सामने आ रही है, वह बेहद चिंताजनक है। पुलिस प्रशासन और भ्रष्ट तंत्र पत्रकारों को टारगेट कर रहे हैं। झूठे आरोप मढ़कर फर्जी अपराध दर्ज कराना अब आम हो गया है।

पत्रकार जब भ्रष्टाचार, भूमाफिया, नेताओं और अफसरों के काले कारनामे उजागर करता है, तो यही लोग तिलमिलाकर पुलिस को गुमराह करते हैं और निर्दोष पत्रकार को सलाखों के पीछे धकेल देते हैं।

अफसोस की बात यह है कि बहुत जगह पर पुलिस की भूमिका अक्सर निष्पक्ष न होकर पत्रकारों के खिलाफ दुर्भावना से भरी रहती है। भ्रष्टाचार में लिप्त लोग पत्रकारों पर पैसे मांगने या धमकाने जैसे मनगढ़ंत आरोप लगाते हैं, और पुलिस बिना तथ्यात्मक जांच के मामले दर्ज कर देती है।

अब सवाल यह है — क्या पत्रकार सच न लिखें? क्या वे वही दिखाएं जो भ्रष्ट लोग चाहते हैं? क्या जनता को झूठ में जीने दिया जाए और सरकारी खजाने लूट लिए जाएं?

सच यही है कि पत्रकार का धर्म झूठ का पर्दाफाश कर सच सामने लाना है और यही बात सिस्टम को नागवार गुजरती है। पुलिस और सत्ता के लिए पत्रकार “कठिन सवाल” हैं, इसलिए उन्हें कुचलने की कोशिशें की जाती हैं। लेकिन याद रखिए — सच को न पुलिस दबा सकती है, न सत्ता!

हमारी गुजारिश है जब भी पत्रकारों के खिलाफ कोई अपराध दर्ज हो, तो न्यायिक जांच अनिवार्य हो ताकि वर्दी की आड़ में कानून का खिलवाड़ न हो, और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कमजोर न पड़े।

पत्रकार कभी भी लोकतांत्रिक सरकार से नहीं लड़ता। वह लड़ता है भ्रष्ट, निरंकुश और तानाशाही प्रवृत्तियों से — ताकि जनता का भरोसा लोकतंत्र पर बना रहे। पत्रकार ही वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द व्यक्ति, समाज, शासन और देश घूमते हैं।

पत्रकारिता सिर्फ़ पेशा नहीं — यह लोकतंत्र की रीढ़ है। इसे कमजोर करना राष्ट्र को कमजोर करना है।

✍️ हरिशंकर पाराशर
आरपीकेपी इंडिया न्यूज
          कटनी

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